भारत में बढ़ती तकनीकी निर्भरता की वजह सेसाइबर फ्रॉड के मामले आए दिन आम बात हो चुकी है लेकिन इस मामलों की जांच में सबसे बड़ी समस्या निजी सेक्टर के बैंकों का असहयोग कोर्ट से आदेश मिलने के बाद भी बैंकों द्वारा आरोपियों के खाते की डिटेल्सआसानी से करवाई जाती है
लखनऊ में गोमतीनगर विस्तार निवासी एक शख्स को साइबर ठगो ने अपने जाल में फंसा कर 38 लाख रुपए की ठगी कर ली जब पीड़िता ने साइबर थाने में एफआईआर दर्ज करवाई तो पुलिस ने कार्रवाई शुरू की और जलसाओं तक पहुंचाने के लिए एक निजी बैंक से ट्रांजैक्शन का ब्योरा मांगा लेकिन इस बात को एक महीना बीत जाने के बाद भी बैंक की तरफ से कोई रिस्पांस नहीं आया और वर्कलोड का बहाना बनाकर अब तक ब्योरा नहीं भेजा ऐसा ही एक मामला और सामने आया है घटना के एक सप्ताह से अधिक समय होने और बैंक को दो बार रिमाइंडर भेजने के बाद ही बैंक नेआरोपियों के खातों की डिटेल प्रधान नहीं करवाई है
राजधानी में साइबर ठग का जाल फैला हुआ है दूर दराज बैठे तक किसी को मुनाफे का लालच देकर, तो किसी को गिरफ्तारी का डर दिखाकर, तो किसी को डिजिटल अरेस्ट करके ठग क्राइम को अंजाम दे रहे हैं साइबर ठग की घटनाओं पर नियंत्रण के लिए साइबर थाने और जिला स्तर पर साइबर क्राईम सेल बनाई गई है संबंधित थानों में 5 लाख से कम रकम वाले फ्रॉड के केस दर्ज होने के बाद उन्हें साइबर सेल सुलझा रही है वह 5 लाख से अधिक रकम वाले साइबर के केस साइबर थाने में दर्ज हो रहे हैं
बैंकों का सहयोग नाम मिलना बड़ी समस्या
साइबर फ्रॉड केस की जांच करने के लिए एक पुलिसकर्मी का कहना है कि साइबर क्रिमिनल किसी के खातों से ट्रांसफर करवा गई रकम को मल्टीपल ट्रांजैक्शन कर उसे अलग-अलग खातों में पहुंचते हैं बड़ी रकम के फ्रॉड वाले केस में ओरिजिन अकाउंट से लेकर आखिरी अकाउंट तक का ब्योरा मिलने के बाद ही वह ट्रैप हो पाते ऐसे कैसे की विवेचना हमने सबसे बड़ी दिक्कत है बैंकों की ओर से सहयोग न मिलना ना ही तरीके से ट्रांजैक्शन को डाटा मुहैया करवा रहे हैं इसकी वजह से पुलिस को फ्रॉड तक पहुंचाने के काफी मुश्किल का सामना करना पड़ता है